पाँच हाइकु

 


कलिला हात
थमायौ है कलम
चिट्ठी आश्रममा।

डोको र नाम्लो
भिर छ पहिरो छ
दाम्रियो पेट।

नबोली बोल्यौ
हेरेनौ मुर्छा पार्यौ
एकल प्रीति।

दाम नाम छ
राज छ नीति छैन
प्रतिज्ञा छैन।

जन्मिय रमें
एकसुर दौडिए
खोक्रो जिन्दगि।



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